Author: हेमंत यादव (Page 2)

ख्वाब
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अंधेरों से लड़ते ख्वाबों का
पूरा होना इतना आसान नहीं होता
अंधेरे को चीरकर उजालों की और बढ़ने में
खुद को खुद से निकालने का हुनर भी आना चाहिए
रास्ते में बिखरे कांटों का मिलना बड़ी बात नहीं
रास्तों में दुश्मनों द्वारा बोये गये कांटों पर से
गुजर जाने का हुनर आना चाहिए
यूं तो हजारों मुश्किलों से गुजरता है
एक राही
पर राह में मुस्कराते हुए मंजिल तक पहुंच जाने का
हुनर भी आना चाहिए

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खफा
  • By हेमंत यादव
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बेशक खफा हो जाया करो
लेकिन दिल के किसी एक कोने में
इतंजाम मना लेने का और
मान लेने का भी कर लिया करो
यूं तो हजारों शिकायतें हैं
हमारे दरमियां
लेकिन उनको रिश्ता टूटने की
वजह मत बना लिया करो
गमों में मुस्कराने की
सलाह सब देते हैं
लेकिन तुम आसूंओं में भी
मुस्कराने की वजह ढूंढ लिया करो

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पहरा
  • By हेमंत यादव
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रिश्तों के बीच पसरी
खामोशी
पहरा देने लगी है
भावनाओं पर
कहीं उमड़ने ना लगे
भावनाएं
और मैं किनारे हो जाऊं
उनके प्रेम की बारिश से
लहरों के आने तक
टूट जाये मेरे सांसों की डोर
खड़ी है वो तुम्हारे बीच
तुम्हारी नादानियों का सहारा लेकर

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इज्जत
  • By हेमंत यादव
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अपने प्रेमी संग
भागी हुई लड़की के
पिता से पूछा किसी ने
तुम्हें बेटी प्यारी है या इज्जत
पिता ने नजरें नीची कर
खामोशी से जवाब दिया
इज्जत
दूसरा सवाल लड़के के पिता से
कहां गया
तुम्हें बेटा प्यारा है या इज्जत
पिता ने हल्की सी मुस्कान लाकर कहां
बेटा प्यारा है,
हो जाती है जवानी में
छोटी मोटी गलतियां
उस दिन पता लगा कि
बेटियां ना प्यारी होती है
ना जवान होती है
बेटियां इज्जत होती है

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कोई और

आंखो में प्यार और
चेहरे पर मुस्कान बनाए फिरते हो
कोई अनजाना सा छेड़ गया तार
तेरे दिल के
लेकिन इल्जाम किसी और पर लगाये फिरते हो
नजरों की गुस्ताखियां कहीं
निशाना कहीं और
इनके तीखे वार कहीं और चलाते हो
ख्यालो में कोई
और ख्वाबों में कोई
लेकिन दिल में किसी और को बसाये फिरते हो

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खुशियां
  • By हेमंत यादव
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ना जाने ऐसी कौन-सी
खुशी खरीदनी होती है
इंसान को
जो हर पल भागता है
अपनों से दूर
अपने आप से दूर
नहीं देख पाता घर के आंगन में
बिखरी छोटी-छोटी खुशियों को
ना जाने किसे पाने की ख्वाहिश में
भटकता रहता है आंगन की दहलीज से बाहर
कहीं कीमत लगाता है खुशियों की तो
कहीं बेच देता है खुद को
खुशियों की चाह में

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बेरूखी
  • By हेमंत यादव
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  1. इतनी बेरूखी अच्छी नहीं
    मोहब्बत में
    कुछ इस तरह चले जायेंगे
    तेरी दुनिया से
    ढूंढने अगर निकलोगे तो
    यादों के गलियारों में भी नहीं मिलेंगे

2. तेरे बिना भी जिंदगी में
खूब फूल खिलेंगे
हम वो आशिक नहीं जो
टूटकर जिंदगी को बेरंग बना ले

3. तीर नजरों के मोहब्बत में
ही अच्छे लगते है
बात नफरतों की हो तो
वहीं नजरे दुश्मन बना देती है

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पापा
  • By हेमंत यादव
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ना जाने
खामोशी से प्यार करते हुए
दर्द को बयां ना करते हुए
कैसे अपनी जिंदगी
अपने बच्चों के सपनों को
पूरा करते-करते निकाल देता है
वो पिता
उसकी आंखों में साफ़ नज़र आती हैं
बच्चों के सपने की चमक
दर्द से आने वाले
आसूंओं को कहीं रोक लेता है
बीच में रास्ते में ही
इस डर से कि
बह ना जाए
उसके बच्चों के सपने

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अनसुलझी

अजीब सी अनसुलझी
अनकही बातें
जो ठहर गई है
कहीं मुझमें
जिनका जिक्र
हर रोज
होता है
मेरे मन के अकेलेपन में
रात की खामोशी में
मेरी आंखों तक पहुंच आती हैं
वो
पर अफसोस की सरसराहट भरी आवाज सुन
चुपचाप खिसक लेती है
फिर कहीं किसी कोने में जा बैठती है

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मन की गीली मिट्टी
  • By हेमंत यादव
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जब दस्तक देती है

खुशियां तो

इंसान खुद से दूर होकर

बांट देता है दुनिया संग

बात जब गमों की हो तो

एक कोना ढूंढता है

दुनिया से दूर जाकर रोने का

पर अफसोस की नहीं मिल पाता

उसे वो कोना

और रो लेता है खुद के अंदर ही

घोल देता है मन की गीली मिट्टी में

अवसाद पीड़ा दुःख

जिस गीली मिट्टी में गुंथनी थी

उसे खुशियां

पर अफसोस की इंसान उस पीड़ा से

छुटकारा नहीं पाना चाहता

वो कोशिश नहीं करता

उस मिट्टी को सूखाने की

और लील कर देता है

अपने साथ अपनों की जिंदगी भी

उस अवसाद से निकलने में

उसे जरूरत किसी के प्रेम की

रोने के लिए किसी के कंधों की नहीं

बल्कि उसे जरूरत है

खुद को समझने की

कुछ वक्त अकेले बैठ एकांत में

खुद को समझने की

कुछ सपनों के बुनने की

ईश्वरीय देन जिंदगी को

समझकर जीने के लिए

खुद में नयी उमंगे भरने की

जो उसकी व उसके अपनों की

जिंदगी हसीन बना देंगी

 

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