Short Story (Page 5)

समन्दर के तूफान

सच में, वो तो बस मज़ाक ही तो कर रहा था!

जैसे सब मज़ाक-मज़ाक में उसे चिढ़ाते थे, उसने भी मज़ाक ही तो किया था। मज़ाक भी क्या, बस एक बात ही तो कही थी कि अगर जो जहाज से कोई इस खुले समन्दर में गिर पड़ा, फिर न किसी के बस की बात।

सबके सामने वो दावा ठोंककर आया था कि पूरी नेवी के सारे डाइवर, सारी बोट्स, सारे दिखावे सब के सब धरे रह जाने वाले हैं,

Read More
!! मुसीबत को बुलावा !!

शोभना को मायके गये हुए पूरे छः दिन गुजर चुके हैं! हर दिन ऐसे सुकून से गुजरा, एक बार को भी ऐसा कुछ न हुआ, जो मन की मर्जी का न रहा हो! न शोभना के दिन भर टोकने वाले टोटके, न ही विप्लव की बार-बार की फर्माईशें। किसी के लिए कुछ नहीं लेकर नहीं आना, बाजार नहीं जाना, मोल-भाव, खरीददारी कुछ नहीं, किसी के लिए कुछ नहीं करना। न जूते घर के बाहर उतारकर अन्दर आने की चकल्लस,

Read More
!! कोई भी तो नहीं आता !!

ये विकास के विलायती काज भी क्या अंदाज़ के होते हैं। घरेलू आँगनों में इनकी महक की अजीब दहक आज बड़े खुलेआम बिखरी है । सभ्यता और संस्कारों के बागीचे में हमारे देश के भीतर घर-घर में अच्छे भले भरे-पूरे परिवार हुआ करते थे। पर अब तो बस परिवार की बातें होती हैं। वो भी बड़े मिजाज से।

भोर के आरंभकाल से ही श्रीमती जी ने लांछन लगाने शुरू कर दिये। एकाएक तीक्ष्ण-स्वर कानों पर गिरे थे:-
“तुम्हारे घर से तो मिस-कॉल ही आती है। यहाँ आयेंगे,

Read More
X
×