Author: Anamika Amitabh Gaurav (Page 4)

व्यथा

सुबह से 50 फाइलें निबटाने के साथ सिर और गर्दन दोनों भारी हो चले थे। विकास ने हाथ से चाय का इशारा कर पूछा.. जाऊं मेडम ? मेने स्वीकृति में सर हिला दिया ।विकास की कुर्सी का खिसकना और मेरे चैम्बर का दरवाजा खुलना एक साथ हुआ।

सामने एक पेंसठ साल से अधिक के वृद्ध व्यक्ति खड़े थे,पेंट, शर्ट, मोटा सा हाथ का बुना स्वेटर , माथे पे वुलन का टोपी, गले मे स्कार्फ,

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जयप्रकाश

हमारे ऑफ़िस में एक होम गार्ड हे ….” जयप्रकाश “… भगवान जब दिमाग़ बाँट रहे थे तो वो पता नहीं कहाँ बेठे खेनी खा रहे थे… उनको किसी काम के लिए समझाना टेड़ी नहीं आंढ़ी- बाँकी सारी खीर हे । बोलते एसे हें की मुँह में फ़व्वारा लगा हो , बोलते कम हें थूकते ज़्यादा हें, ऊपर से उच्चरण माशाल्लाह !!! मुँह खुले ही खुले में सब बात कह देते हें । कुछ बोलो तो “हें मेंsssssडम!!!!

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नारी शक्ति

 

डेस्क पे सर रखे हुए “दिशा” एकटक दीवार को देखती थी, उठ के कभी दूसरी डेस्क तक जाना कभी वाशरूम का चक्कर लगाती थी। निधि ने उसकी परेशानी भांपते हुए हाथ के इशारे से ‘क्या हुआ?” पूछा…. आंखों में तैर आये आंसुओं को लगभग रोकते हुए दिशा वाशरूम में चली गयी।निधी उठ के पीछे -पीछे बात करने को गयी।

क्या हुआ दिशा डिलीवरी के बाद से आई हो तब से परेशान हो???बेबी ठीक है ना?

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हीरा

हीरा के रिक़्शे पर आज उसका सबसे स्पेशल पैसेंजर था …उसका 5 साल का बेटा मंगल जिसे वो प्यार से चोखा बोलता था। हीरा भी यूपी-बिहार के लाखों लोगों की तरह अपना गाँव छोड़ दिल्ली आ बसा था।समय की मार ने हाथ मे रिक्शा पकड़ा दिया और हीरा और उसकी जिंदगी उसके पैरों की मार से चल पढी।

पिछले साल भर पैसे जमा कर उसने बेटे के स्कूल की फीस इकट्ठा की थी…पूरा 15 हज़ार रूपईया..स्कूल भी सरकारी नहीं अंग्रेजी मीडियम..

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माँ

“माँ”

विद्या का फौजी पति लगभग 11 साल पहले शहीद हो चुका था,और उसके पास छोड़ गया 4 साल का रघुआ बहुत अधिक गोरा होने के कारण प्यार से उसका नाम कलुआ रख दिया था।एकलौते बेटे के जाने के गम में बहुत जल्दी ही सास ससुर भी चल बसे।अब रह गई विद्या ,कलुआ और उनकी 5 बीघा ज़मीन, वो ज़मीन जिस पर ना जाने कितनों की गिद्द दृष्टी थी।और उनकी मुराद पूरी भी हो रही थी,

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माँ

हमारे हर जिद की परवाह करती माँ….
कभी गुस्सा करती हमपर,
तो कभी प्यार से गले लगा लेती है माँ…..
हमारे दर्द को,

अपना दर्द बना लेती है माँ…..

हमारे होठोँ की हँसी के लिए,
सब कुछ लुटा देती है माँ……

हमारी हर खुशी के लिए ,
अपनों से भी लड़ जाती है माँ….

जब भी कभी हम परेशान होते हैं, तो हमें तुम बहुत याद आती हो माँ
खुद चाहे कितनी थकी हो,

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मिलन

जिंदगी जिंदगी ना होती ।
अगर तुझसे मेरा मिलन ना होता।।
प्यार प्यार ना होता ।अगर तुझसे मेरा मिलन ना होता।।
ऐ मेरे हमदम मेरी जिंदगी अधूरी होती।
अगर तुझसे मेरा मिलन ना होता।।
तुमने सिखाया मुझे कि क्या हूँ मैं ।
तूने ही सिखाया मुझे की अहमियत क्या है मेरी ।।
तूने ही मुझे दिया जिंदगी का हर वह फलसफा।
तुने ही मुझे दी जिंदगी में हर जहाँ की खुशी ।।
ए मेरे हमदम न जाने क्या होता।
अगर हमारा मिलन ना होता।।
शायद मैं अनामिका ना होती ।
तू मेरा अमिताभ ना रहता।।राधा कृष्ण का प्यार है हमारे मिलन में।
राम सीता का त्याग है हमारे मिलन में ।।
शिव पार्वती सा विश्वास है हमारे मिलन में ।
गंगा जमुना जैसी पवित्रता है हमारे मिलन में।।
एक ही अरदास अब तुझसे ।
अँधेरा हर ओर व्याप्त हो फिर भी,

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वो बेशरम लड़की

वो बेशरम लड़की
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पहली बार उसे बेशरम तब बोला गया जब वह करीब 10 साल की थी. घर में किसी ने गाली दी थी. शायद बड़ी या छोटी दादी में से कोई थी. घर का माहौल ऐसा था कि वहां गाली खाना और गाली देना आम बात थी. तब उसे बेशरम का मतलब नहीं पता था. वो लड़कों के साथ लड़कों की तरह दिनभर उछलकूद करती थी. शायद ये बात दादी को ठीक नहीं लगी थी.

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