Author: Ashish Anand Arya "Ichchhit"

Pride Rider : A Boy

When a boy
Have to drive a scooter
He only knows
What he expresses himself!

Loudly loud bullet
He also likes a lot,
Splendid sports bike
He too aspired to be,
When people from side to side
With their motorcycles go beyond him
With the speed ​​of even less than a hundred cc
He also had a pain in his mind,

Amid Lightning-fast stacks of motorbikes
From the sight of girls trampling him
He also has great vibrancy,

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!! चाय-बिस्कुट वाली शाम… !

 

पूरे दिन की सिरदर्दी बाद
चाय और बिस्कुट की शाम!
संग तुम्हारे बैठ बतियातीं
मुझसे मेरी ख्वाहिशें तमाम!

उँगलियों की अठखेलियों से
माथे की तह में पलता सुकून,
दिनभर कैसे चलीं दूरियाँ
सोचता मैं तुमसे ज्यादा हैराँ!

खनखनाती खुश कलाइयों के
प्यार की कैद में यूँ महफूज़…
होठों पर गुनगुनी सी चुस्की
आँखों में खूब ढेर ईत्मीनान!

रूपये के रिवाज से मन गुस्सा
ये रोज-रोज का कैसा काम?

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!! नेह-पंखों की उड़ान !!

जब नेह ने पंख पसारे
प्रिय तुम मेरे ही थे सारे!
चित्तवत सुंदर वदन सलोना
ध्येय हुए अतुलित सब न्यारे!
जीवन की चंचल माया के अजब अद्भुत सहारे!

सिमटकर अंक के मोहक रंग में
किलकारी ने रूदन छंद वारे…
बालपन वाले दंभ को जीकर
नितांत सुख संभव संचारे!
जीवन की चंचल माया के अजब अनुपम सहारे!

तीर आयु-वेग के जी-भर चले
यूँ जले समर्थ रंग पखारे!

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दर्द वाला डाॅक्टर

 

घर के दरवाजे पर टँगी नाम-पट्टिका पर ‘डाॅक्टर‘ नाम चढ़ते देखना, सारे मुहल्ले वालों के लिए काफी आश्चर्यजनक घटना थी।

वैसे गंगाधर जी के भाषा-ज्ञान का उतना अनुभव न होता, तब तो उतनी ही सलवटें हमारे माथे पर भी पड़तीं। परंतु हम अनुभवी थे। हकीकत जानते थे। उनकी विद्वत्वता पर पूरा भरोसा था। आखिर होता भी क्यों न? दो-चार पोथियाँ तो हम ही से लेकर स्थायी उधार कर गये थे। उनमें से एक लौटाने का मौका भी आया था। बिल्कुल चपल प्रतिक्रिया की थी उन्होंने।

बस पता ही चला था उन्हें कि हमारे गाँव वाले भतीजे को किताब के आठ-दस पन्नों का ज्ञान बटोरना है। उसी दिन झाड़-पोछकर निकाल सामने रख ली थी। वरना उससे पहले तो बिल्कुल सहेजकर रखी थी हमारी किताब उन्होंने अपने दड़बे में। हमसे बात होने के बाद घंटे भर में नोट्स पूरे करके,

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🙅 ज़िद्दी लाडो 🙅

बचपन में जो भी बारिश नज़र के सामने आयी, उसने खूब कागज़ की कश्तियाँ देखी मेरे हाथों में। खूब चींटे-चीटियों को सैर करायी अपनी उन अरमान भरी कश्तियों में। और अगर जो उम्र की दहलीज़ ने पाँवों में ये समझदारी की बेड़ियाँ न बांध दी होतीं, फ़िर तो ज़रूर पूरी दुनिया ही सफ़र कर चुकी होती मेरी उन कागज़ी कश्तियों में और न जाने कितने चक्कर लग चुके होते इस पूरी दुनिया के!

खैर,

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ऐ वतन… हमको तेरी कसम…

“काश, इन गिरती आसमानी बिजलियों को रोकना भी इतना आसान काम होता!”
लगातार ऊँचे आकाश पर निगाहें टिकाये रत्नेश के होठों पर ये बिल्कुल लाज़िमी सवाल था। कई साल फ़ौज की सेवा में गुज़ारने के बाद अब तो उसे जैसे हर काम को ही चुटकियों में खत्म कर डालने की आदत हो गयी थी। पर ये सब तो जैसे कुदरत का कहर था, जिस पर उस जैसे किसी का कोई बस न था।

शाम ढलने को हो आयी थी। रात का अंधेरा आसमान को अपने काले रंग से गहराने पर उतारू था। और उसी बीच मानसूनी बारिश और कड़कती आसमानी बिजलियों का वो रोज़ का सिलसिला एक बार फ़िर से शुरू हो चुका था। इस मानसून और इसी बारिश का तो वहाँ जैसे हर किसी को ही इंतज़ार था,

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आखिरी PART : शक्ति-पुँज & आचार्य अदग
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शक्ति-पुँज & आचार्य अदग : PART 17
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