Author: Hitesh Pal

माता-पिता

नहाने को पुछा न पानी गरम
हड्डियों को गंगा नहलाते हे वो
माता- पिता को आदर न दिया
और पंडित को शिश झुकाते हे वो
माता-पिता को न पुछा भोजन कभी
और हर साल बरसी मनाते हे वो
जीते जी हँसते हुए दर्द दिया इतना
मरने के बाद रो कर शोक मनाते हे वो

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अधूरी मोहब्बत
कुछ मोहब्बत है अधूरी सी ||
जो न मिल सकी पुरी सी
कुछ मोहब्बत है अधूरी सी |
चाहा था हमने भी जी जान से उनको
न रखी थी कोई कमी दिल मे
हमने तो जहाँ मान लिया था उनको
फिर भी दिल मे
कुछ मोहब्बत है अधूरी सी ||
कभी वो हमसे नज़रें चुराते थे
कभी हमसे नज़रें मिलाते थे
कुछ मोहब्बत है अधूरी सी |
आँखों ही आँखों से प्यार बया कर जाते थे
उनकी यही मोहब्बत हमें समझ नही आती थी
आँखों मे प्यार था दिल मे तिरस्कार था
कुछ मोहब्बत है अधूरी सी ||
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मेरी कामयाबी
मेरी कामयाबी पर लोग क्यू जलते है ऐसा तो क्या किया मेने जो मुझसे दूर चलते है बस मेहनत किये जा रहा हू अपने सपनों को सज़ा रहा हू दिल मे न घृणा किसी से न किसी से बैर मुझको हर किसी को कामयाबी की दुआ दिये जा रहा हू मे तो राही हु बस चले जा रहा हू ।।
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सुनहरी रात
हर शाम के बाद सुनहरी रात आती है ख़्वाबों मे ही उन से बात हो जाती है कुछ वो कुछ हम दर्द दे दिल बया कर जाते है इसी बीच प्यार की गुफ़्तगू हो जाती है रात ऐसे ही उनके ख़्वाबों मे कट जाती है जैसे सुबह उनके मिलन को बुलाती है हर शाम के बाद सुनहरी रात आती है ख़्वाबों मे ही उन से बात हो जाती है ॥
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बूँदे
ये बूँदे जब मुझे भिगोती है मन मे नयी उमंग सजोती है अपने सब दुख दर्द भुल जाता हु मन मे ख़ुशि की बौछार होती है एक पल स्वर्ग पहुँच जाता हु ये बूँदे जब मुझे भिगोती है ।। ये बूँदे तन तो पावन कर जाती है मन भी पावन कर जाती है ईश्वर के समीप होने का मन मे एहसास कराती है दुनिया की सारी ख़ुशी दे जाती है ये बूँदे जब मुझे भिगोती है ।।
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हालात
हालात हे ऐसे बता नही पाता हु अपनी मजबूरी मुसकान तले छुपा जाता हु जी लेता हु एक पल दर्द भरी जिदगी पर किसी के आगे नही गिड़गिड़ाता हु जानता हु लोग रहम तो कर देंगे पर मेरे मजबुरीयो पर हँस कर मेरा सोदा कर देंगे इसलिए हालातो से लड़ जाता हु अपनी मजबुरी दुनिया से छुपाता हु
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हमारा प्यार
कभी न हुयी हो ऐसी बौछार होगी हमारे प्यार की हर जगह बात होगी जब प्यार के अफ़साने लिखे जायेंगे हमारा प्यार याद किया जायेगा क्या प्यार किया था इन लोगो ने एक दूजे के होके भी बेगाने थे नही होती थी कोई मुलाक़ात नही होता था कोई वार्तालाप फिर भी एक दूजे के दिवाने थे ।।
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ये दूरियाँ
अब तो ये दूरी सही नही जाती किसी से बेचैनी कही नही जाती । दिन व्याकुलता मे गुज़र जाता है रात का अकेलापन हमें डराता है यादों के सहारे ही भोर हो जाता है अब तो ये दूरी सही नही जाती किसी से बेचैनी कही नही जाती । हम भी चाहते हे ये दूरी मिट जाये तुम हमारे और हम तुम्हारे हो जाये मिलन हो ऐसा की अफ़साने बन जाये हमारी मोहब्बत के तराने बन जाये हर आशिक यही धुन गून गूनाए अब तो ये दूरी सही नही जाती किसी से बेचैनी कही नही जाती ।
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अजनबी हूँ

अजनबी हूँ इस शहर मे

कोई तो अपना लो

प्यार ना दो भले एक पल

इस दर्द मे साथ निभा लो

उपकार होगा उनका जो

हमें अपने गले लगायेंगे

हम भी भगवान समझ

उन्हें ह्रदय मे बसायेंगे

अजनबी हूँ इस शहर मे

कोई तो अपना लो

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जीवन पथ
मुसाफ़िर हु चलता जा रहा हु मंज़िल का पता नही पथ पर क़दम बठाये जा रहा हु बाधाएँ बहुत आ रही हे पथ पर इस विषम परिस्थिति मे भी बाधाओं से लड़ता जा रहा हु मुसाफ़िर हु जलता जा रहा हु ।। ना किसी से आशा हे कृपा की ना किसी से चाहा हे रहम की पथ पर कर्म किए जा रहा हु मंजिल की चिन्ता छोड़ कर मुसाफ़िर हु चलता जा रहा हु ।।
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