Sorry, nothing in cart.
- By Raj Nandini Kumari
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- Poetry
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जरा गौर फरमाना फुरसत से इन अल्फाजों पर वरना शब्दों को समझने मे हुई भूल अक्सर अर्थ का अनर्थ बना देती हैं।
कितनी अजीब बात है और कितना सच भी जरुरत रिस्तों की नही रिस्ते जरुरतों की मोहताज होती हैं।
मेरी सोच अक्सर भयभीत और परस्पर विरोधी रही है इस तथ्य की ।।
विरोधी इस लिए क्यो कि है मेरे पास कुछ ऐसे रिस्ते जिनके होने की कोई वजह नही ,
और भयभीत क्योंकि वजहें खत्म होने लगी है अब उनके होने की
डर जाती हूँ ये सोच कर जिस दिन सारी वजहें खत्म हो जाएगी खो ना दूँ उस दिन कहीं उस रिस्ते को भी मै
ऐसा क्यों होता है जिस पल मन को किसी के साथ होने का एहसास होता उसके अगले ही पल उसको खो देने का डर मन मे घर कर रहा होता
कहते है इम्ताहां जरूरी होती है रिस्तों की ये अलग बात है हम लेते नही वो खुद दे देते जानना जरूरी होता है कई बार रिस्तों मे बने रहने की हमारी कोशिशे एकतरफा तो नही है
क्यो कि एकतरफा भावनाऐं सिर्फ तकलीफ देती हैं और ऐसे भी उम्र कँहा होती है एकतरफा रिस्तों की।
इन्हे बनाए रखने की कोशिशों मे हम कभी कभी अपने आत्म सम्मान को भी ताख पे रख कर पहल कर रहे होते है वो जाहिर कर रहा होता है कि उन के अपनों की भीड़ मे हमारी कोई जगह नही है और हम समझने को तैयार नही होते मगर अपने आत्मसम्मान को इतना रौदना भी सही नही है कि वो दम ही तोड़ दे
वैसे भी दौर मुफलीसी में ज्यादा झुकना दरिया दिली नहि मौकापरस्ती समझी जाती है
और मेरी खुदगरजी को ये हरगीज गवारा नही है
वैसे भी खुदगरजी का सौदा खुद्दारी की कीमत पर जायज नही है
और जब भी मेरे खुदगरजी की जंग मेरी खुद्दरी से हुई है अकसर इस जंग मे मेरी खुद्दारी की फतह पहले से तय होती है।
ये अलग बात है अकसर इस जंग मे मेरे कुछ खास रिस्तों की बड़ी बेदर्द शहादत हुई है।
वैसे इन सब मे दोष किसी का नही है बाकिफ हुँ मै अपनी नियती की नीयत से ये वो छीन लेती है जिसकी मेरी जिंदगी मे खुद से ज्यादा अहमीयत होती है ।
शायद समझाना चाहती है किसी को इतनी अहमीयत ना दो कि जाने अनजाने वो तकलीफ देने लगे तुम्हे।
शायद बताना चाहती है जिसके लिए हम सबकुछ दरकिनार कर देते वो एक दिन किनारा कर लेता है हमसे
ये रवायत है जहाँ कि या जहाँ वालो कि फिदरत ये तो पता नही मगर बीना अर्जी बिना मर्जी किसी को अपने ख्यालों मे जगह दे देना हम इंसानों की बहुत बुरी आदत है।।