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पूरे दिन की सिरदर्दी बाद
चाय और बिस्कुट की शाम!
संग तुम्हारे बैठ बतियातीं
मुझसे मेरी ख्वाहिशें तमाम!
उँगलियों की अठखेलियों से
माथे की तह में पलता सुकून,
दिनभर कैसे चलीं दूरियाँ
सोचता मैं तुमसे ज्यादा हैराँ!
खनखनाती खुश कलाइयों के
प्यार की कैद में यूँ महफूज़…
होठों पर गुनगुनी सी चुस्की
आँखों में खूब ढेर ईत्मीनान!
रूपये के रिवाज से मन गुस्सा
ये रोज-रोज का कैसा काम?