Sorry, nothing in cart.
आज से चार महीना पहले तक हर कुछ सामान्य था शायद सिर्फ रिश्ते असामान्य हो रहे थे ।
सब कुछ अपनी ही धारा में चल रही थी और फिर कोरोनावायरस आया।
हर कुछ बदल गया मेरा ऐसा मानना है कि, कोरोनावायरस सिर्फ मजदूरों को ही नहीं यह हर किसी को प्रभावित कर रहा है । ऐसा कोई घर नहीं है जो इस वायरस से होने वाली समस्याओं से न जूझ रहा है। अगर हम अपने आसपास नजर घुमाते हो तो देखते हैं कितने हमारे ऐसे मित्र होंगे जिनकी नौकरी छूट गई है कितने ऐसे होंगे जिन्हें महीनों तक सैलरी मिलने की उम्मीद नहीं होगी अगर हम सोचने बैठे तो देखते हैं कि हमने ऐसा क्या कर डाला जिससे हमें इतना कुछ सहना पड़ रहा है ।
तो मुझे अपनी ही रचित पंक्तियां याद आती है —–