विजय गाथा लिख देता हूं मैं कश्मीर के घाटी की
तपोवन की स्थली स्वर्ग के माटी की
उस धरा की जहां फूलों की खुशबू महक उठती थी
वही भूमि जिसे देख परिया शर्माती थी
आज उस धरा का स्वर्णिम युग आया
कश्मीर आज भारत का मुकुट फिर से कहलाया
कारगिल से कन्याकुमारी तक बस एक ही आवाज थी
बुलंद रहे तिरंगा हर भारतवासी की आवाज थी
कुछ सियारों को आज घड़ियाली आंसू रोते देखा
कुछ कुत्तों की दुम को सीधा देखा
वही कुत्ते आज खामोश हो गए
आतंक का तो पता नहीं पत्थरबाज गुम हो गए
कश्मीरी पंडितों की याद आते ही रूह कांप जाता था
यह करुणामय दृश्य हमेशा मुझे रुलाता था
उस दृश्य का अंत हो गया घाटी से
तपोवन की स्थली स्वर्ग की माटी से
तोड़ आतंक को दो हिस्सों में
नया इतिहास लिखने में
मुखर्जी की याद दिला दी
तुम्हें बहुत लगा था 370 हटाने में
“सृजन”