Satire

दर्द वाला डाॅक्टर

 

घर के दरवाजे पर टँगी नाम-पट्टिका पर ‘डाॅक्टर‘ नाम चढ़ते देखना, सारे मुहल्ले वालों के लिए काफी आश्चर्यजनक घटना थी।

वैसे गंगाधर जी के भाषा-ज्ञान का उतना अनुभव न होता, तब तो उतनी ही सलवटें हमारे माथे पर भी पड़तीं। परंतु हम अनुभवी थे। हकीकत जानते थे। उनकी विद्वत्वता पर पूरा भरोसा था। आखिर होता भी क्यों न? दो-चार पोथियाँ तो हम ही से लेकर स्थायी उधार कर गये थे। उनमें से एक लौटाने का मौका भी आया था। बिल्कुल चपल प्रतिक्रिया की थी उन्होंने।

बस पता ही चला था उन्हें कि हमारे गाँव वाले भतीजे को किताब के आठ-दस पन्नों का ज्ञान बटोरना है। उसी दिन झाड़-पोछकर निकाल सामने रख ली थी। वरना उससे पहले तो बिल्कुल सहेजकर रखी थी हमारी किताब उन्होंने अपने दड़बे में। हमसे बात होने के बाद घंटे भर में नोट्स पूरे करके,

Read More
राजह्थानी कहानी
  • By जुझार सिंह
  • |
  • Satire
  • |
  • 554 Views
  • |
  • 0 Comment

इस्कूल री बात
राम राम सा !!

आजकाल इस्कूल भोत बदळीजग्या । टाबर भी एकदम छोटा छोटा इस्कूल जावै और मास्टरां गी जग्यां फूटरी फूटरी मैडम हुवै ।

म्हारै जमाने में आठवीं मैं भी दाढ़ी मूंछ हाळा इस्टूडेंट हुँवता …..दसवीं मै तो दो तीन टाबरां गा माईत भी पढ़ाई करता ।
और मास्टर गी तो पूछो मत ….धोती और खद्दर गो चोळो , एक एक बिलांत गी मूंछ ….जाणै जल्लाद है । ऊपर स्युं हाथ मै तेल स्युं चोपडेड़ो डंडो !!!

Read More
काम वाली… ‘द’ बवाली…
  • By Ashish Anand Arya "Ichchhit"
  • |
  • Satire
  • |
  • 444 Views
  • |
  • 0 Comment

 

काम-वाली का बवाल आख़िरकार हाहाकार कर ही उठा।

चर्चा-प्रक्रिया तो वैसे कई महीनों से जारी थी। घर की आला-कमान ने अपना फरमान भी काफ़ी पहले ही सुना दिया था। पर ये तो हम थे, जो कुछ न कुछ करके मामले को पुरजोर टरकाए जा रहे थे। लेकिन आख़िर कब तक? अकेला भला कब तक लड़ता खुद के बचाव की ये जंग! हारकर हथियार डाल ही दिये। काम-वाली की पगार भर आमदनी सीधे श्रीमती जी के हाथों में रखी और ऑफ़िस चलते बने।

ऑफ़िस में तो रोज की तरह पूरा दिन रहे,

Read More
!! किसी के बाप से भी नहीं डरता !!
  • By Ashish Anand Arya "Ichchhit"
  • |
  • Satire
  • |
  • 601 Views
  • |
  • 0 Comment

मैं तो किसी के बाप से भी नहीं डरता! ऐसा कई बार मुझे भी कहते सुना गया है!

वैसे डर क्या है, इसे सही मायनों में केवल डरने वाला ही जानता है! जैसे इंसान जानवरों से डरता है। इस डर से उबरने के लिए उसने बहुत प्रयोग किये। प्रयोग इतने ज्यादा हो गये कि असर अब उल्टा होने लगा है। उदाहरणार्थ चूहों के भीतर का चूहापन खत्म होने की कगार पर है। अब ये जन्तु इंसान के बनाए आलीशान महलों में भी बिना किसी डर,

Read More
X
×