Posts tagged “अल्फाज”

अल्फाजों की महफ़िल
  • By हेमंत यादव
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आजकल लोग प्रेम नहीं
बातें प्रेम की करते हैं
दूरी रखते हैं
रिश्तों की आहटों से भी
लेकिन बात रिश्तों के निभाने की करते हैं
लगाते हैं कीमत खुशियों की
लेकिन चंद स्वार्थों में खुशियां गंवाते
फिरते है
पता है जिंदगी मौत पर
आकर खुद रूकेंगी
लेकिन फिर भी मौत के नाम से डरते है
हम तो बेहिसाब प्रेम दिल में
भरे बैठे हैं तुम्हारा
फिर भी इजहार कर देने के नाम से डरते हैं

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कुछ अल्फाज
  • By हेमंत यादव
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कुछ टूटा हुआ सा

उलझा हुआ सा है मुझमें

जो देता है मुझे

आगे बढ़ने की वजह

टूटे हुए को

जोड़ने की ओर

उलझनों को सुलझाने की ओर

खुद को सुलझाकर

जोड़ देने की जद्दोजहद में

मिल जाती है

मुझे कुछ छोटी-छोटी खुशियां

जो ले जाती है

मुझे इस वीरानी दुनिया से दूर

जहां पल भर ही सही

लेकिन दूर कर लेती हूं

खुद को तमाम मुश्किलों से

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अधूरे अल्फाज

रात के अंधेरे में

जब चांद की रोशनी आती है

खिड़की के झरोखे से

नींद के आगोश में

होता है ये संसार

उस रात के सन्नाटे में

बेहद याद आते हो तुम

कितनी ही अनकही बातों का

सैलाब उमड़ता है

तुमसे करने को बैचेन

बेताब उस रात के सन्नाटे में

हजारों कविताएं लिखी जाती है

दिल के कोरे पन्ने पर

आसूंओं की बूंदें

ढलकने लगती है

और आधी अधूरी कविता को

छुड़वाकर नींद अपने

आगोश में ले जाती है

 

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मेरे अल्फाज

 

निकल जाना चाहती हूं

उस दुःख से

उस चिंतन से

जो रोज मुझे सालता रहता हैं

अंदर अंदर ही

बाहर आ जाना चाहती हूं

इस बनावटी मुस्कान से

फिर से पा लेना चाहयी हूं

वो खुलकर चहचहाने की हंसी

वो मुस्कान जो

हर वक्त मेरे चेहरे पर चेहरे की सुंदरता बढाती थी

खुलकर जी लेना चाहती हूं

इस जिंदगी को

ना जाने दुबारा फिर मौका मिले ना मिले

 

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