Posts tagged “#स्त्री”

स्त्री

हमारे श्रृंगार को समझो ना हमारी कमजोरी
हमारी मर्यादा को समझो ना हमारी बेरी
हम ही वह है जो समुद्र लांघ गए हम ही वह है जो ही एवरेस्ट फतह कर गए
हम ही वह है जो आसमान को छू लिए ।
अगर हमारे त्याग की गाथा लिखो तो
तुम्हारी स्याही खत्म हो जाएगी
अगर हमारे बलिदान की कहानी पढ़ो तो
तुम्हारे पन्ने कभी खत्म ना हो पाएंगे
हम स्त्री हैं हम अपनों की खुशी और मर्यादा के लिए कुछ भी कर जाएंगे।।

अनामिका अमिताभ गौरव ✍️

Read More
स्त्री

आसान नहीं होता प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना,
क्योंकि उसे पसंद नहीं होती जी हुजूरी,
झुकती नहीं वो कभी
जबतक न हो
रिश्तों में प्रेम की भावना।
तुम्हारी हर हाँ में हाँ और न में न कहना वो नहीं जानती,
क्योंकि उसने सीखा ही नहीं झूठ की डोर में रिश्तों को बाँधना।
वो नहीं जानती स्वांग की चाशनी में डुबोकर अपनी बात मनवाना,
वो तो जानती है बेबाक़ी से सच बोल जाना।
फ़िज़ूल की बहस में पड़ना उसकी आदतों में शुमार नहीं,

Read More
स्त्री और सांसों की गिनती
  • By हेमंत यादव
  • |
  • Poetry
  • |
  • 5441 Views
  • |
  • 1 Comment

कुछ स्त्रियां सांसे गिनती है
अपनी जिंदगी की
खौफ के सायें में
ख्वाबों को मारकर
हर रोज आसूंओं का
कड़वा जहर पीकर
झूठी मुस्कान की ओट लेकर
और संस्कारों की चादर में
घूट-घूट कर जीना
अगर जिंदगी है तो
इसे मैं जीना नहीं कहूंगी
सिर्फ सांसों की गिनती कहूंगी

Read More
ओ स्त्री

ऐ स्त्री

जब तक तू

खामोश रहेगी

चुप रहेगी

सहती रहेगी

तब तक ये

दुनिया तेरे

प्रेम की

तेरे संस्कारों की

तेरे सम्मान, स्वाभिमान की

धज्जियां उड़ाती रहेगी

आग लगा दे इस

प्रेम को

पारंपरिक संस्कारों को

उन अपनों को

जिनकी खातिर तू

सब सहती हूं

उठ खड़ी हो लड़

सबके खिलाफ

कोई साथ नहीं देगा

तेरा लेकिन

तुझे भूलना होगा

तू कमजोर नहीं

सबकुछ सहने वाली नहीं

अबला नहीं सबला बन

खूद के लिए

अपने सम्मान के लिए

कुद जा अत्याचारों के

खिलाफ आग में

 

Read More
राजनीति करने वाले

सुख चैन सब हरने वाले , हिन्दू मुस्लिम करने वाले ।
थोड़ा तो गम खा ले बालक , बिन मौत के मरने वाले।
आग लगी है अपने ही घर में , घृत अर्पण करने वाले ।
मै गीता , तू कुरान को पढ ले , जुल्म अक्षम्य करने वाले।।
चेत समय पर मेरे भाई , सपा – बसपा करने वाले ।
धरा धरा पर रह जाएगा , तेरी मेरी करने वाले ।
देश की खातिर जी ले कुछ दिन ,

Read More
स्त्री

প্রাক্তন এর সাথে আচমকা দেখা,তারপরের আবেগ আপ্লুত একাকীত্ব মুহূর্ত নিয়ে লেখা কবিতা

अगर सिखा दें बेटियों को

बचपन से बिना ड़र

और बिना सलीके के रहना तो

आज राह चलते

बेटियां रौंदी

नहीं जाती

सिखाया जाता है

उन्हें गुड्डे गुड़ियों की

शादी कर घर बसाना

ड़राया जाता है

समाज के तुच्छ

संस्कारों के नाम पर

मार दिया जाता हैं

प्रेम के नाम पर

दबा दी जाती है

उनकी भावनाएं

जला दिए जाते है

उनके सपने

समेट दी जाती है

उनकी जिंदगी

बना दी जाती है

एक स्त्री

जो इंसान नहीं

सिर्फ स्त्री है

जिसमें रुह नहीं

बस जिस्म है

जो प्रेमिका नहीं

बच्चों को जन्म

देने वाली पत्नी है

तब कहता है

ये समाज

स्त्री कमजोर अबला नारी होती है

Read More
X
×