Posts tagged “AshishandArya”

!! चाय-बिस्कुट वाली शाम… !

 

पूरे दिन की सिरदर्दी बाद
चाय और बिस्कुट की शाम!
संग तुम्हारे बैठ बतियातीं
मुझसे मेरी ख्वाहिशें तमाम!

उँगलियों की अठखेलियों से
माथे की तह में पलता सुकून,
दिनभर कैसे चलीं दूरियाँ
सोचता मैं तुमसे ज्यादा हैराँ!

खनखनाती खुश कलाइयों के
प्यार की कैद में यूँ महफूज़…
होठों पर गुनगुनी सी चुस्की
आँखों में खूब ढेर ईत्मीनान!

रूपये के रिवाज से मन गुस्सा
ये रोज-रोज का कैसा काम?

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!! नेह-पंखों की उड़ान !!

जब नेह ने पंख पसारे
प्रिय तुम मेरे ही थे सारे!
चित्तवत सुंदर वदन सलोना
ध्येय हुए अतुलित सब न्यारे!
जीवन की चंचल माया के अजब अद्भुत सहारे!

सिमटकर अंक के मोहक रंग में
किलकारी ने रूदन छंद वारे…
बालपन वाले दंभ को जीकर
नितांत सुख संभव संचारे!
जीवन की चंचल माया के अजब अनुपम सहारे!

तीर आयु-वेग के जी-भर चले
यूँ जले समर्थ रंग पखारे!

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दर्द वाला डाॅक्टर

 

घर के दरवाजे पर टँगी नाम-पट्टिका पर ‘डाॅक्टर‘ नाम चढ़ते देखना, सारे मुहल्ले वालों के लिए काफी आश्चर्यजनक घटना थी।

वैसे गंगाधर जी के भाषा-ज्ञान का उतना अनुभव न होता, तब तो उतनी ही सलवटें हमारे माथे पर भी पड़तीं। परंतु हम अनुभवी थे। हकीकत जानते थे। उनकी विद्वत्वता पर पूरा भरोसा था। आखिर होता भी क्यों न? दो-चार पोथियाँ तो हम ही से लेकर स्थायी उधार कर गये थे। उनमें से एक लौटाने का मौका भी आया था। बिल्कुल चपल प्रतिक्रिया की थी उन्होंने।

बस पता ही चला था उन्हें कि हमारे गाँव वाले भतीजे को किताब के आठ-दस पन्नों का ज्ञान बटोरना है। उसी दिन झाड़-पोछकर निकाल सामने रख ली थी। वरना उससे पहले तो बिल्कुल सहेजकर रखी थी हमारी किताब उन्होंने अपने दड़बे में। हमसे बात होने के बाद घंटे भर में नोट्स पूरे करके,

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