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राजह्थानी कहानी
  • By जुझार सिंह
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  • Satire
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इस्कूल री बात
राम राम सा !!

आजकाल इस्कूल भोत बदळीजग्या । टाबर भी एकदम छोटा छोटा इस्कूल जावै और मास्टरां गी जग्यां फूटरी फूटरी मैडम हुवै ।

म्हारै जमाने में आठवीं मैं भी दाढ़ी मूंछ हाळा इस्टूडेंट हुँवता …..दसवीं मै तो दो तीन टाबरां गा माईत भी पढ़ाई करता ।
और मास्टर गी तो पूछो मत ….धोती और खद्दर गो चोळो , एक एक बिलांत गी मूंछ ….जाणै जल्लाद है । ऊपर स्युं हाथ मै तेल स्युं चोपडेड़ो डंडो !!!

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मेरी अधूरी कहानी…❤️

मेरी अधूरी कहानी…❤️
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मुझे आज भी बख़ूबी याद है college का वो दिन जब मैंने पहली बार तुम्हें देखा था…
कोने में कैद, खुद में खोई हुई, भीड़ से अलग…
उस दिन मैंने तुम्हें नहीं ,तुम में ख़ुद को देखा था। शायद इसलिए उस दिन ही तुमसे प्यार हो गया था।

वैसे तो सुबह की नींद मुझे बहुत प्यारी थी, मगर उस दिन के बाद से अक्सर तुम्हारा चेहरा खयालों में मुझे जागने के लिए मजबूर कर देता था। शायद अब मैं बदल गया था,

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असलियत में कैद : बाप खुद कहानी

घड़ी में
वो शाम की सुइयाँ दिखते ही
ये सीना
रोज़ ही फिर तैयार हो जाता है..
कि अब बस बंद होगा ऑफिस
और कदम फिर कौंधेंगे ताबड़तोड़
सीधे घर की ओर,
और घर पहुंचते ही
आकर सीने से चिपट जाएगी
वो मेरी लाडली,
पर खयाल ये एक
मन में पनपते ही
उमड़ उठते हैं
इस एक खयाल को
मानो जैसे लूटते-कचोटते
ये कितने सारे-सारे-सारे बवाल
कि आया है जब से ये कोरोना वाला काल
हर पल ही ज़िन्दगी
बनती जा रही बड़े-बड़े सवाल
कि रोटी और नौकरी
दोनों ही जीवन को अति ज़रूरी हैं
और किसी एक से भी बना पाना दूरी
असंभव मजबूरी है
पर ये नौकरी और रोटी वाले सवाल पर
जब भी लौटकर आते
घर से बाहर निकले ये कदम
साथ होते डर भरे सवाल
कि सबकुछ तो ठीक ही है न फिलहाल?

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