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आसान नहीं होता प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना,
क्योंकि उसे पसंद नहीं होती जी हुजूरी,
झुकती नहीं वो कभी
जबतक न हो
रिश्तों में प्रेम की भावना।
तुम्हारी हर हाँ में हाँ और न में न कहना वो नहीं जानती,
क्योंकि उसने सीखा ही नहीं झूठ की डोर में रिश्तों को बाँधना।
वो नहीं जानती स्वांग की चाशनी में डुबोकर अपनी बात मनवाना,
वो तो जानती है बेबाक़ी से सच बोल जाना।
फ़िज़ूल की बहस में पड़ना उसकी आदतों में शुमार नहीं,