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स्त्री

প্রাক্তন এর সাথে আচমকা দেখা,তারপরের আবেগ আপ্লুত একাকীত্ব মুহূর্ত নিয়ে লেখা কবিতা

अगर सिखा दें बेटियों को

बचपन से बिना ड़र

और बिना सलीके के रहना तो

आज राह चलते

बेटियां रौंदी

नहीं जाती

सिखाया जाता है

उन्हें गुड्डे गुड़ियों की

शादी कर घर बसाना

ड़राया जाता है

समाज के तुच्छ

संस्कारों के नाम पर

मार दिया जाता हैं

प्रेम के नाम पर

दबा दी जाती है

उनकी भावनाएं

जला दिए जाते है

उनके सपने

समेट दी जाती है

उनकी जिंदगी

बना दी जाती है

एक स्त्री

जो इंसान नहीं

सिर्फ स्त्री है

जिसमें रुह नहीं

बस जिस्म है

जो प्रेमिका नहीं

बच्चों को जन्म

देने वाली पत्नी है

तब कहता है

ये समाज

स्त्री कमजोर अबला नारी होती है

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नारी शक्ति

 

डेस्क पे सर रखे हुए “दिशा” एकटक दीवार को देखती थी, उठ के कभी दूसरी डेस्क तक जाना कभी वाशरूम का चक्कर लगाती थी। निधि ने उसकी परेशानी भांपते हुए हाथ के इशारे से ‘क्या हुआ?” पूछा…. आंखों में तैर आये आंसुओं को लगभग रोकते हुए दिशा वाशरूम में चली गयी।निधी उठ के पीछे -पीछे बात करने को गयी।

क्या हुआ दिशा डिलीवरी के बाद से आई हो तब से परेशान हो???बेबी ठीक है ना?

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